Friday, March 25, 2011

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शानदार ग्लोबल रुझानों का असर शुक्रवार को घरेलू शेयर बाजार भी देखने को मिल

रहा है। बीएसई के सभी इंडेक्स में बढ़त के साथ कारोबार हो रहा है। आईटी, टेक्नोलॉजी और कैपिटल गुड्स के शेयरों में खासी तेजी है।

10 बजकर 50 मिनट पर बीएसई सेंसेक्स 180.08 अंकों की बढ़त के साथ 18,530.82 पर कारोबार कर रहा था। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के निफ्टी सूचकांक में 50.75 अंकों की तेजी थी और यह 5573.15 पर पहुंच चुका था। बीएसई के मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स क्रमशः 0.79 और 0.90 फीसदी ऊपर हैं।

जिन कंपनियों के शेयरों में खासी तेजी देखने को मिल रही है, उनमें इंफोसिस, सन फार्मा, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, डीएलएफ, विप्रो, एलएंटी, भेल, जेपी एसोसिएट्स और ओएनजीसी शामिल हैं।

महाराष्ट्र सरकार के बजट में यूनिफॉर्म स्टांप ड्यूटी

के तहत लेवी का प्रस्ताव भले ही शेयर बाजार के खिलाड़ियों को रास नहीं आ रहा हो, लेकिन राज्य सरकार इसे अपनी आमदनी बढ़ाने का कारगर हथियार मान रही है। पिछले कुछ साल से स्टांप ड्यूटी से सरकार के खजाने को काफी सहारा मिलता रहा है। राज्य सरकार के प्रस्ताव में सिक्योरिटीज से जुड़े लेनदेन पर 0.005 फीसदी स्टांप ड्यूटी या फिर एक करोड़ के टर्नओवर पर 500 रुपए लेवी लगाने की बात है।

सरकारी सूत्रों के मुताबिक, जनवरी 2011 तक 10 महीनों में राज्य सरकार ने स्टांप ड्यूटी के रूप में 440 करोड़ रुपए इकट्ठा किए हैं। वर्तमान कारोबार साल में कुल स्टांप ड्यूटी संग्रह 500 करोड़ रुपए से भी ज्यादा रहने की उम्मीद है। कारोबारी साल 2009-10 में यह राशि 464 करोड़ रुपए थी, जबकि साल 2008-09 में स्टांप ड्यूटी के जरिए कुल 385 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ था। महाराष्ट्र सरकार के कुल स्टांप ड्यूटी राजस्व में सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन का हिस्सा 4 फीसदी है।

नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर महाराष्ट्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'हम उम्मीद करते हैं कि 0.005 फीसदी यूनिफॉर्म स्टांप ड्यूटी लेवी के प्रस्ताव से अगले साल सरकारी की झोली में 300 करोड़ रुपए का इजाफा होगा। इस प्रस्ताव का मकसद संग्रह प्रक्रिया को सरकार और शेयर ब्रोकरों के लिए आसान और बेहतर बनाना है।'

फिलहाल, सरकार ने डिलीवरी, नॉन-डिलीवरी और प्रॉपराइटरी टर्नओवर के लिए अलग-अलग दरें तय कर रखी हैं। ब्रोकरों को इन सौदों पर क्रमश: 0.01 फीसदी, 0.002 फीसदी और 0.001 फीसदी का शुल्क अदा करना होता है।

ज्यादातर ब्रोकरों का मानना है कि राज्य सरकार के इस कदम से डे ट्रेडर पर विशेष तौर पर असर होगा। वॉल्यूम में गिरावट और लिक्विडिटी की कमी से वे पहले ही दबाव में हैं और उन्हें डर है कि सरकार के इस फैसले से उनका मार्जिन और कम हो सकता है। वीएनएस फाइनेंस एंड कैपिटल सर्विसेज के वी के सिंघानिया के मुताबिक, राज्य सरकार के प्रस्ताव से बाजार में लिक्विडिटी और प्राइस डिस्कवरी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने बताया, 'एसटीटी, सर्विस टैक्स और स्टांप ड्यूटी जैसे कई शुल्कों की वजह से ट्रांजैक्शन लागत काफी बढ़ गई है। 0.005 फीसदी के यूनिफॉर्म टैक्स की वजह से शेयर ब्रोकरों (ज्यादातर डे ट्रेडर) की आय पर असर पड़ेगा। ऐसे में ब्रोकरों को दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर होना पड़ सकता है।'

महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि वैसे सभी ब्रोकरों को इक्विटी और इससे जुड़े सभी सौदों पर स्टांप ड्यूटी देना होगा, जो बीएसई और एनएसई के जरिए होते हैं। चूंकि दोनों स्टॉक एक्सचेंज मुंबई में मौजूद हैं, इसलिए ब्रोकरों के रजिस्टर्ड ऑफिस और उनके ग्राहकों अगर मुंबई में नहीं भी है तो उन्हें ड्यूटी का भुगतान करना पड़ेगा। हालांकि, ब्रोकरों का मानना है कि स्टांप ड्यूटी इंस्ट्रूमेंट (शेयर बाजार से जुड़े सौदों का कॉन्ट्रैक्ट नोटबुक) पर लिया जाना चाहिए, जो किसी भी राज्य में स्थित रजिस्टर्ड या ब्रांच ऑफिस से जारी किया जा सकता है।

पिछले दो साल में पहली बार मुंबई में मकान की

कीमतों में 15 फीसदी गिरावट आई है। रियल एस्टेट जानकारों का कहना है कि अगले तीन से चार महीने तक कीमतों में गिरावट का रुख जारी रहेगा। उसके बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और बंगलुरु में रिहायशी प्रॉपर्टी की कीमतों में गिरावट देखने को मिलेगी। जोंस लैंग लसाल (जेएलएल) इंडिया के कंट्री हेड और चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा, 'प्रॉपर्टी की कीमतें गिर रही हैं। मुंबई के उन इलाकों में रियल एस्टेट सस्ता हो रहा है, जहां कीमतें बहुत चढ़ गई थीं। डेवलपरों की बिक्री घट रही है। कम से कम अगले चार महीनों तक यही रुझान रह सकता है।'

जोंस लैंग लसाल रियल एस्टेट क्षेत्र की कंसल्टिंग फर्म है। परेल, लोअर परेल, महालक्ष्मी, बांदा ईस्ट, अंधेरी ईस्ट, गोरेगांव ईस्ट, थाणे, मुलुंड और कुर्ला में डेवलपर 10-15 फीसदी कम कीमतों पर प्रॉपटीर् बेच रहे हैं। जेएलएल इंडिया के सीईओ संजय दत्त ने अपने ब्लॉग में लिखा है, '2010 में कीमतें 2008 के शीर्ष स्तर के मुकाबले 20 फीसदी चढ़ गई थीं, लेकिन अब मुंबई में रिहायशी प्रॉपर्टी की कीमतें फिर से 2008 के स्तर पर आ गई हैं। इसे करेक्शन कहा जा सकता है। मुंबई के डेवलपरों को तत्काल पूंजी की जरूरत है। इसलिए वह कम दाम पर प्रॉपर्टी बेच रहे हैं। अगले तीन महीने तक करेक्शन का यह दौर जारी रहेगा।'

दत्त के मुताबिक, बिक्री में कमी, कर्ज के बढ़ते बोझ और जमीन के बढ़ते वैल्यूएशन के चलते डेवलपरों के पास ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए बेहतर स्कीम पेश करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि डेवलपर एचएनआई से फंड जुटाने की कोशिश में लगे हैं। इसके अलावा, वे एनबीएफसी से 21-25 फीसदी ब्याज पर पूंजी जुटा रहे हैं। मुंबई के फाइनेंशियल सर्विसेज समूह प्रभुदास लीलाधर की रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी में मुंबई और उसके उपनगरों दोनों ही में 2010 के उच्चतम स्तर के मुकाबले बिक्री में क्रमश: 45 और 46 फीसदी की गिरावट आई है।

रिहायशी प्रॉपर्टी की बिक्री में अगस्त 2010 से ही गिरावट का रुख है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'ब्याज दरों में बढ़ोतरी के साथ ही ग्राहकों की मकान खरीदने की क्षमता पर दबाव बढ़ा है। इसके अलावा, कीमतों में और गिरावट की आशंका को देखते हुए ग्राहक मकान खरीदने की अपनी योजना टाल रहे हैं।' रियल एस्टेट जानकारों का मानना है कि 2009 की मंदी के बाद से प्रॉपर्टी की कीमतों में तेजी का यह सबसे छोटा चक्र है। टियर-1 और टियर-2 शहरों में मकानों की मांग बढ़ने से दो साल के अंदर शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतों में 60 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

कीमतों में अचानक आई इस तेजी से मकान असल ग्राहकों की पहुंच से बाहर चले गए हैं, जिससे मुंबई और एनसीआर जैसे शहरों में बिक्री 50 फीसदी तक घट गई है। बिक्री में गिरावट के साथ ही बाजार में लिक्विडिटी घटने और कर्ज का बोझ बढ़ने से डेवलपरों पर खासा दबाव बन गया है, जिससे वे 10-15 फीसदी डिस्काउंट देने को मजबूर हुए हैं। जानकारों के मुताबिक, मुंबई में प्रॉपर्टी मार्केट में कमजोर सेंटीमेंट का असर न सिर्फ अहमदाबाद जैसे पड़ोसी बाजारों पर पड़ने की संभावना है बल्कि इसका असर बंगलुरु और एनसीआर जैसे शहरों पर पड़ेगा, जहां बाजार की स्थितियां एक समान हैं।

नाइट फ्रैंक इंडिया के नेशनल डायरेक्टर गुलाम जिया ने कहा, 'लोअर परेल, घाटकोपर और मुलुंड में नियमित रूप से नई परियोजनाएं देखने को मिली हैं। बड़ी संख्या में अपार्टमेंट लॉन्च होने का इंतजार कर रहे हैं। मुंबई के इन इलाकों में दूसरे शहरों के मुकाबले ज्यादा करेक्शन आएगा।' जनवरी 2011 से सभी बड़े शहरों में कम नए प्रोजेक्ट लॉन्च हुए हैं। जेएलएल के पुरी ने कहा, 'नई परियोजनाएं 15-30 फीसदी कम हो गई हैं। दिसंबर 2010 तक बड़े शहरों में लग्जरी प्रोजेक्ट्स की बिक्री में तेजी देखी जा रही थी, लेकिन कम मांग के चलते प्रीमियम और लग्जरी सेगमेंट में लॉन्च की संख्या घट गई है। इसकी मुख्य वजह ज्यादा वैल्यूएशन है, जिसका असर एचएनआई श्रेणी के खरीदारों पर भी पड़ता है।'

जिया का मानना है कि सबसे पहले इस करेक्शन का असर लग्जरी सेगमेंट पर पड़ेगा। उन्होंने कहा, 'लग्जरी सेगमेंट की असाधारण ग्रोथ से जरूरत से ज्यादा आपूर्ति की स्थिति पैदा हो गई है।



कुछ साल पहले रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कजामे ने योजना आयोग के पूर्व सदस्य

और पूर्व कृषि राज्य मंत्री सोम पाल से मुलाकात की। वह विकास संबंधी मसलों पर सोमपाल के विचारों से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपने देश में विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए सोम पाल को आमंत्रित किया। वे रवांडा गए और उनके लिए वहां पूरा ऑफिस बनाया गया।

उपजाऊ जमीन और जलवायु की अनुकूल स्थितियों के बावजूद रवांडा खाद्य संकट के दौर से गुजर रहा था। सोम पाल कहते हैं, 'मैंने कजामे से वादा किया कि कुछ ही समय में रवांडा खाद्य की अतिरिक्त उपलब्धता वाला देश बन जाएगा।' लेकिन, प्रतिकूल तंत्र के चलते उनकी योजनाएं बेकार हो गईं।

सोम पाल कहते हैं, 'अधिकतर अफ्रीकी नेता डॉलर में विदेशी सहायता हासिल करने के लिए अपने लोगों की खराब हालत का रोना रोते हैं। संस्थाओं, बड़ी कंपनियों और संकीर्ण, निहित स्वार्थों के बीच मिलीभगत है।' इस रुझान के चिन्ह भारत में भी देखे जा सकते हैं। तब से सोम पाल केन्या और जांबिया के हालात को भी नजदीक से देख चुके हैं और वहां भी कहानी अलग नहीं है। तब वे अफ्रीका में हरित क्रांति (एजीआरए) के समझौते का आकलन किस तरह से करेंगे। यह रॉकफेलर फाउंडेशन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की पहल है।

गेट्स फाउंडेशन ने अकेले एजीआरए को 26.45 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है। सोम पाल कहते हैं, 'वे अफ्रीकी महादेश में पैठ बनाने के लिए वहां के लोगों की दयनीय स्थिति का इस्तेमाल कर रहे हैं। परोपकार से संबंधित उनके संसाधनों का बड़ा हिस्सा कारोबारी हितों को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।' अफ्रीकी देशों में कमजोर प्रशासन के चलते उनका काम और आसान हो जाता है।

रसायन-मुक्त और जीएमओ-मुक्त खाद्य पदार्थों के समर्थक रहे सोम पाल एजीआरए और विकासशील देशों में चल रही परोपकार की गतिविधियों को लेकर सहज नहीं हैं। दुनिया भर में स्वतंत्र रूप से नीति का अध्ययन करने वाले और वैज्ञानिकों की भी यही सोच है। उदाहरण के लिए गेट्स फाउंडेशन खुद को जाने या अनजाने वैसे जगहों पर ले जा रहा है, जहां नीति, कारोबार और परोपकार संबंधी गतिविधियां आपस में जुड़ती हैं। इसके व्यावसायिक कामकाज और निवेश का ताल्लुक बड़ी कंपनियों से है, जो मुनाफे के मकसद से संचालित होती हैं। विकासशील देशों में शिक्षा, हेल्थकेयर और कृषि से संबंधित नीति बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित किया जा रहा है।

दुनिया में जीएम फूड के सबसे बड़े उत्पादक मोनसैंटो में गेट्स फाउंडेशन ने 2.31 करोड़ डॉलर का निवेश किया है। यह तो इस रुझान का महज एक उदाहरण है। आम लोगों के हितों से जुड़े संगठन इसे अपनी दलील के सबूत के रूप में देखते हैं। यह अफ्रीकी देशों में जीएम फसलों के लिए रास्ता बनाने की कार्यसूची है। कड़े विरोध के बाद अब कृषि को लेकर बिल गेट्स के नजरिए में बदलाव देखने को मिल रहा है। वे ऑर्गेनिक्स और तकनीक आधारित कृषि की अच्छी बातों को अपनाने की बात करने लगे हैं। गेट्स फाउंडेशन का जोर है कि उसके निवेश और चैरिटी को अलग-अलग रूप में देखा जाना चाहिए। लेकिन, इस बात के लिए उनकी आलोचना होने लगी है।


મુંબઈ શેરબજાર આજે બપોરે પણ ગ્રીન ઝોનમાં ટ્રેડ થઈ રહ્યું હતું. બપોરે 12 વાગ્યે BSE સેન્સેક્સ 182.21 પોઈન્ટ વધીને

18,532.95 પોઈન્ટની સપાટીએ ટ્રેડ થઈ રહ્યો હતો.


નેશનલ સ્ટોક એક્સચેંજનો નિફ્ટી 52.80 પોઈન્ટ વધીને 5575.20 પોઈન્ટની સપાટીએટ્રેડ થઈ રહ્યો હતો.

BSE મિડકેપ અને BSE સ્મોલકેપ ઈન્ડેક્સ અનુક્રમે 0.75 ટકા અને 0.88 ટકા વધીને ટ્રેડ થઈ રહ્યા હતા.

આજે બપોરે ટેકનો તેમજ આઈટી શેરોમાં ભારે લેવાલી જોવા મળી હતી. આજે બપોરે પણ તમામ સેક્ટોરલ ઈન્ડાઈસિસ પોઝિટિવ ઝોનમાં ટ્રેડ થઈ રહ્યા હતા.


મુંબઈ શેરબજાર આજે બપોરે પણ ગ્રીન ઝોનમાં ટ્રેડ થઈ રહ્યું હતું. બપોરે 12 વાગ્યે BSE સેન્સેક્સ 182.21 પોઈન્ટ વધીને

18,532.95 પોઈન્ટની સપાટીએ ટ્રેડ થઈ રહ્યો હતો.


નેશનલ સ્ટોક એક્સચેંજનો નિફ્ટી 52.80 પોઈન્ટ વધીને 5575.20 પોઈન્ટની સપાટીએટ્રેડ થઈ રહ્યો હતો.

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